कुछ दिन पहले मैं अपने एक दोस्त से बात कर रहा था जो यूरोप आने से पहले जिंदगी भर देहली में रहा और पला बढ़ा। उसने मुझसे यह सवाल पूछा कि लंदन और डबलिन जाने से पहले तुम हिंदुस्तान में कहां कहां रहे थे। तो मैंने उसको सब बताया के कैसे मेरे वालिद साहब बीएसएफ में थे और मैं हिंदुस्तान के हर कोने में रहा और पला बढ़ा हूं। फिर उसने पूछा कि तुम्हें नॉर्थ इंडिया खासतौर पर देहली और उत्तर प्रदेश कैसा लगता है, मेरा जवाब था कि मैंने पूरी दुनिया में देहली और उत्तर प्रदेश से बुरी जगह नहीं देखी। देहली और उत्तर प्रदेश मैं कुछ भी नहीं है और लोग सब से बदतर हैं। बाकी दुनिया तो छोड़िए हिंदुस्तान में ऐसी कोई जगह नहीं है जो देहली और उत्तर प्रदेश से बदतर है, हर जगह के लोग देहली और उत्तर प्रदेश के लोगों से बहुत बेहतर हैं। मेरे दोस्त ने कहा कि मुझे भी यही एहसास होता है क्योंकि मैं जिंदगी भर दिल्ली और हरियाणा में रहा और बाहर की दुनिया नहीं देखी थी तो मुझे अपना कुआं ही ठीक लगता था और आज मुझसे कहा जाए कि मैं जाकर वहां दोबारा बस जाऊँ तो मैं नहीं बस सकता।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि कुएं का मेंढक सिर्फ अपने कुंए का ही हाल जानता है जो लोग उत्तर प्रदेश और देहली से बाहर जाकर नहीं रहे उनको मालूम नहीं कि दुनिया कहां पर है और उनके क्या हालात है…. यह मैं इसलिए कह रहा हूं के कुछ दिन पहले मैं इलेक्शन का प्रोग्राम देख रहा था उसमें लखनऊ में कुछ वकील बहस कर रहे थे यहां खूब तरक्की हो रही है, खूब विकास हो रहा है, सब ठीक है। यह सारे वकील कुएं के मेंढक हैं, इन्होंने अपने कुएं से बाहर की दुनिया नहीं देखी। इतनी घटिया जगह है लखनऊ कि वहां पर कोई अच्छा शरीफ इंसान रह नहीं सकता जो कुएं के मेंढक वहां रहते हैं उन्हें वही ठीक लगता है। शायद उन्हें सारी दुनिया ऐसी ही लगती होगी। लेकिन सारी दुनिया ऐसी नहीं है दुनिया की सबसे घटिया जगहों में देहली और उत्तर प्रदेश हैं। दुनिया के सबसे झूठे बेईमान मक्कार खु़दग़र्ज नफ़रती और घटिया लोग रहते हैं लखनऊ, देहली और उत्तर प्रदेश में। इन कुएं के मेंढ़कों को नहीं मालूम कि बाकी दुनिया में लोग सच बोलते हैं, एक दूसरे पर भरोसा कर सकते हैं, औरतें और बच्चियां रात में बाहर अकेली आ-जा सकती हैं, हर आदमी दूसरे आदमी की काट में नहीं लगा….
और जहां तक विकास या तरक्की की बात है तो आज सुबह में लंदन से डबलिन गया और हवाई अड्डा तो छोड़िए खाली ट्रेन और बस का हाल देख लीजिए। नीचे जो तस्वीरें हैं उसमें हमारे ट्रेन के डब्बे में लिखा आता है के कहां-कहां बैठने की जगह ट्रेन में खाली है और कौन-कौन से टॉयलेट ऑक्यूपाइड है। बसों में हर जगह हर सीट पर यूएसबी चार्जर हैं कि आपके फोन में बैटरी खत्म हो जाए तो आप अपना फोन रिचार्ज कर सकें। नीचे एक और तस्वीर है, एक बुक्शेल्फ की। यह गैटविक एयरपोर्ट के ट्रेन स्टेशन की है इस बुक्शेल्फ पर किताबें रखी हैं और लिखा है कि आपको जो खरीदनी हो आप वह ले लीजिए और एक पाउंड चंदे के डब्बे में डाल दीजिए। बिल्कुल इसी तरह डबलिन एयरपोर्ट पर एक जगह हज़ार दो हज़ार पानी की बोतलें रखी रहती है हर जगह लिखा हुआ है कि 1 बोतल 1 यूरो की है। आप वहां से एक बोतल उठाइए और एक यूरो वहां डब्बे में डाल दीजिए। दोनों जगह कोई दुकानदार नहीं, कोई लेने देने वाला नहीं, कोई रखवाल नहीं, सिर्फ लोगों की इमानदारी के भरोसे पर सामान बिक रहा है और सालों से बिक रहा है। क्या ऐसा कभी भी दिल्ली लखनऊ या उत्तर प्रदेश में हो सकता है? नहीं, कभी नहीं
और जहां तक विकास या तरक्की की बात है तो आज सुबह में लंदन से डबलिन गया और हवाई अड्डा तो छोड़िए खाली ट्रेन और बस का हाल देख लीजिए। नीचे जो तस्वीरें हैं उसमें हमारे ट्रेन के डब्बे में लिखा आता है के कहां-कहां बैठने की जगह ट्रेन में खाली है और कौन-कौन से टॉयलेट ऑक्यूपाइड है। बसों में हर जगह हर सीट पर यूएसबी चार्जर हैं कि आपके फोन में बैटरी खत्म हो जाए तो आप अपना फोन रिचार्ज कर सकें। नीचे एक और तस्वीर है, एक बुक्शेल्फ की। यह गैटविक एयरपोर्ट के ट्रेन स्टेशन की है इस बुक्शेल्फ पर किताबें रखी हैं और लिखा है कि आपको जो खरीदनी हो आप वह ले लीजिए और एक पाउंड चंदे के डब्बे में डाल दीजिए। बिल्कुल इसी तरह डबलिन एयरपोर्ट पर एक जगह हज़ार दो हज़ार पानी की बोतलें रखी रहती है हर जगह लिखा हुआ है कि 1 बोतल 1 यूरो की है। आप वहां से एक बोतल उठाइए और एक यूरो वहां डब्बे में डाल दीजिए। दोनों जगह कोई दुकानदार नहीं, कोई लेने देने वाला नहीं, कोई रखवाल नहीं, सिर्फ लोगों की इमानदारी के भरोसे पर सामान बिक रहा है और सालों से बिक रहा है। क्या ऐसा कभी भी देहली लखनऊ या उत्तर प्रदेश में हो सकता है? नहीं, कभी नहीं, और देहली और उत्तर प्रदेश वालों के चलते पूरे हिंदुस्तान में भी नहीं हो सकता। लेकिन लखनऊ में बैठे यह झूठे, मक्कार, कुएं के मेंढक वकील सिर्फ अपना कुआं जानते हैं और बाकी पूरी दुनिया से अनजान हैं। उन्हें यह तक नहीं मालूम कि वह दुनिया की सबसे घटिया जगह में रहते हैं और मैं जितनी बार उत्तर प्रदेश या देहली आता हूं तो मुझे तब्दीली नजर नहीं आती। बल्कि इंसान के इख़लाक़ की तरफ से देखा जाए तो हालात और ख़राब हो रहे हैं। वही घटिया लोग और बदतर हो गए हैं, उनके वही घटिया ख़्याल और बदतर हो गए हैं और उनका वही घटिया प्रदेश और बदतर हो गया है।
मुझे सबसे ज्यादा गुस्सा और हंसी इस बात पर आई के यह झूठे बेईमान मक्कार वकील कह रहे थे कि कोविड-19 हुआ वह पूरी दुनिया में हुआ और ब्रिटेन यूएसए और फ्रांस तक में यही हाल था। लेकिन यह कुएं के मेंढक नहीं जानते के ब्रिटेन यूएसए या फ्रांस में एक भी आदमी ऑक्सीजन की कमी से नहीं मारा, जितने मरे इसलिए मरे क्योंकि कोविड-19 का कोई इलाज नहीं था। देहली और उत्तर प्रदेश में ज्यादातर लोग इसलिए मरे क्योंकि ऑक्सीजन नहीं थी, बेड नहीं थे, बेसिक इन्फ्राट्रक्चर नहीं था। लंदन तो दूर की बात है बम्बई में भी महाराष्ट्र सरकार ने कई हज़ार बेड का कोविड-19 टेंपरेरी हॉस्पिटल बनाया था।
आखिर में एक बात मैं साफ कर देना चाहता हूं, ज़ाहिर है के दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हर शक़्स बुरा नहीं है लेकिन लोगों की अक्सरीयत बुरी ही है।